झील और चाँद
झील की खामोशी
रात की स्याही
एक सर्द कोहरा
... हवा बेसुध
और बहुत गहरे में
गूंजता कोई विरह गीत
और फिर तुम्हारी नजरें उठी
हवा ने सुना दर्द
पुकारा उस बादल को
जो रहता था पहाड़ों के उस पार
ढूँढ लाया वो चाँद को
और फिर तुम मुस्कुराई
चाँद ने चूमा
झील की सतह को
ख़ामोशी टूटी, चाँदनी जागी
और फिर तुमने पलकें झपकाई
इस छोर से उस छोर तक
सिर्फ हलचल
फूट पड़ी कोई कविता
कितने शब्द तरंग बनते चले गए
जब थरथराए तुम्हारे होंठ
~Gopi Nath~
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