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Monday, 28 November 2011
बे-इन्तहा प्यार मेरा न सह सका ऐसा भोलापन......

बे-इन्तहा प्यार मेरा न सह सका ऐसा भोलापन
तेरी दुनिया में अब भी रंग हैं , तितलियाँ हैं सपने हैं
अभी अभ्यस्त नहीं हुई अदाकारी की ये मुस्काने
अभी भी तुझको लगता है , सब तेरे अपने हैं
काश जिंदा रहे जिंदादिली मासूमियत पाकीजगी
मुझ में हिम्मत नहीं , रिवाएतें बताने की
मेरे जाने से कुछ देर और रहेगा ये यकीं
मेरे जाने से हंसी तेरी ये बच पायेगी
कुछ पल की मायूसी कुछ पल में संभल जाएगी
इश्क ही होगा कुर्बां इस तरह से जानेमन
मुझे यकीं है ये सच तू भी समझ जाएगी
तेरी दुनिया में अब भी रंग हैं , तितलियाँ हैं सपने हैं
अभी अभ्यस्त नहीं हुई अदाकारी की ये मुस्काने
अभी भी तुझको लगता है , सब तेरे अपने हैं
काश जिंदा रहे जिंदादिली मासूमियत पाकीजगी
मुझ में हिम्मत नहीं , रिवाएतें बताने की
मेरे जाने से कुछ देर और रहेगा ये यकीं
मेरे जाने से हंसी तेरी ये बच पायेगी
कुछ पल की मायूसी कुछ पल में संभल जाएगी
इश्क ही होगा कुर्बां इस तरह से जानेमन
मुझे यकीं है ये सच तू भी समझ जाएगी
वक़्त है सबसे बड़ा......

मैं तो सदा
फूंक फूंक कदम रखता था
सौ सौ बार परखता था
जाँच-पड़ताल में माहिर
चेहरे पे दिल न होने दूं ज़ाहिर
हर शह को दी मात , चाहे हो रिश्तों की बिसात
यकायक ये क्या हो गया
तयशुदा रास्ता ही खो गया
गरूर अपनी उड़ानों का , देखो ज़मीं पे है पड़ा
वक़्त ही है बादशाह , वक़्त है सबसे बड़ा
फूंक फूंक कदम रखता था
सौ सौ बार परखता था
जाँच-पड़ताल में माहिर
चेहरे पे दिल न होने दूं ज़ाहिर
हर शह को दी मात , चाहे हो रिश्तों की बिसात
यकायक ये क्या हो गया
तयशुदा रास्ता ही खो गया
गरूर अपनी उड़ानों का , देखो ज़मीं पे है पड़ा
वक़्त ही है बादशाह , वक़्त है सबसे बड़ा
Friday, 18 November 2011
Without Freedom Still by Raymond A. Foss....
We gathered, took time off,
pondered our freedom,
on the anniversary
our Declaration of Independence
when we dissolved the political bonds
when we proclaimed, to the world,
what we hoped for, what we believed in
as a people, set apart,
that we hold these truths to be self-evident,
that we are born equal, each one,
that the creator gave us unalienable rights,
life, liberty, and the pursuit of happiness.
How wondrous are those words,
how much we have achieved
casting off the chains that hold us back
how far we have to go; but
We are free, by most measures
How hard life must be
in the many places on the globe
where people are not yet free
where there are people still
in the grip of slavery, in bondage,
in fear for their lives,
for their children’s lives
for any kind of future
for religious persecution,
indiscriminant death
How blind we are,
to the realities around the world
How silent we are
to the evil that stalks this sphere
How much more we could do
if we took our freedoms more seriously
and invested in justice
to the four corners
of this troubled planet
pondered our freedom,
on the anniversary
our Declaration of Independence
when we dissolved the political bonds
when we proclaimed, to the world,
what we hoped for, what we believed in
as a people, set apart,
that we hold these truths to be self-evident,
that we are born equal, each one,
that the creator gave us unalienable rights,
life, liberty, and the pursuit of happiness.
How wondrous are those words,
how much we have achieved
casting off the chains that hold us back
how far we have to go; but
We are free, by most measures
How hard life must be
in the many places on the globe
where people are not yet free
where there are people still
in the grip of slavery, in bondage,
in fear for their lives,
for their children’s lives
for any kind of future
for religious persecution,
indiscriminant death
How blind we are,
to the realities around the world
How silent we are
to the evil that stalks this sphere
How much more we could do
if we took our freedoms more seriously
and invested in justice
to the four corners
of this troubled planet
When things go wrong...
When things go wrong as they sometimes will,
When the road you're trudging seems all uphill,
When the funds are low and the debts are high,
And you want to smile but you have to sigh,
When care is pressing you down a bit
Rest if you must, but don't you quit.
Success is failure turned inside out,
The silver tint on the clouds of doubt,
And you can never tell how close you are,
It may be near when it seems afar.
So, stick to the fight when you're hardest hit
It's when things go wrong that you mustn't quit.
Night Journey by Theodore Roethke
Now as the train bears west,
Its rhythm rocks the earth,
And from my Pullman berth
I stare into the night
While others take their rest.
Bridges of iron lace,
A suddenness of trees,
A lap of mountain mist
All cross my line of sight,
Then a bleak wasted place,
And a lake below my knees.
Full on my neck I feel
The straining at a curve;
My muscles move with steel,
I wake in every nerve.
I watch a beacon swing
From dark to blazing bright;
We thunder through ravines
And gullies washed with light.
Beyond the mountain pass
Mist deepens on the pane;
We rush into a rain
That rattles double glass.
Wheels shake the roadbed stone,
The pistons jerk and shove,
I stay up half the night
To see the land I love.
Its rhythm rocks the earth,
And from my Pullman berth
I stare into the night
While others take their rest.
Bridges of iron lace,
A suddenness of trees,
A lap of mountain mist
All cross my line of sight,
Then a bleak wasted place,
And a lake below my knees.
Full on my neck I feel
The straining at a curve;
My muscles move with steel,
I wake in every nerve.
I watch a beacon swing
From dark to blazing bright;
We thunder through ravines
And gullies washed with light.
Beyond the mountain pass
Mist deepens on the pane;
We rush into a rain
That rattles double glass.
Wheels shake the roadbed stone,
The pistons jerk and shove,
I stay up half the night
To see the land I love.
Wednesday, 9 November 2011
मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहॉं .......
मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहॉं ।
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहॉं ।।
ख्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया ।
अनवरत जीने की खातिर दे रहा हूं इम्तहां ।।
मुतमइन कैसे रहूं जब घर पङोसी का जले ।
है फरिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहॉं ।।
हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए ।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमां ।।
गम नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में ।
हो अगर एहसास जिन्दा छोड़ जायेगा निशां ।।
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं ।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां ।।
मिलती है खुशबू सुमन को रोज अब खेरात में ।
जो फकीरी में लुटाते अब यहॉं फिर कल वहॉं ।।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!Anurag Srivastava!!!!!!!!! !!!!!!!!!!!!!!!
Saturday, 22 October 2011
दिल के ज़ज्बात यूँ दिखे हर सू ...
दिल के ज़ज्बात यूँ दिखे हर सू लोग हंस कर गले मिले हर सू
आज भी है सवाल, सहरा मेंआब ही आब क्यूँ दिखे हर सू
ज़िंदगी मुस्करा नहीं पाती चश्मे नम लोग दिख रहे हर सू
कोई हैवान क्यूँ बना होगानेक इंसान पूछते हर सू
ख्वाहिशें बढ़ गयी हैं अब इतनीआज ईमान बिक रहे हर सू
दिल कई आज रात टूटे हैं लोग अफ़सूरदा दिखे हर सू
गुम कहाँ हो गयी मुहब्बत सब आज दिखते हैं दिलजले हर सू
दुःख भरे दिन तो बीतने ही थे दीप खुशियों के जल उठे हर सू
आज भी है सवाल, सहरा में
आब ही आब क्यूँ दिखे हर सू
ज़िंदगी मुस्करा नहीं पाती
चश्मे नम लोग दिख रहे हर सू
कोई हैवान क्यूँ बना होगा
नेक इंसान पूछते हर सू
ख्वाहिशें बढ़ गयी हैं अब इतनी
आज ईमान बिक रहे हर सू
दिल कई आज रात टूटे हैं
लोग अफ़सूरदा दिखे हर सू
गुम कहाँ हो गयी मुहब्बत सब
आज दिखते हैं दिलजले हर सू
दुःख भरे दिन तो बीतने ही थे
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
Wednesday, 19 October 2011
बीड़ी पीने वाले ने कमाल कर दिया.....
पड़ोसी का बिस्तर जलाकर राख कर दिया
गन्दगी पसन्द हो तो जर्दा खाना सीख ले
भीँख गर माँगी नही तो बीड़ी पीना सीख ले
बीड़ी पीने की मित्रो आदत जब पड़ जायेगी
न होने पर माँगते जरा शर्म न आयेगी
माँगने से मरना भळा यह सच्चा लेखा है
कितने लखपतियोँ को बीड़ी माँगते देखा है
एक भाई तो ऐसे है जो बिना नशे के जीते है
पर कई भाई देखो पाखने मेँ बीड़ी पीते पीते है
बीड़ी पीने से भी हमने देखा धन्धा खोटा है
सिगरेट पीने वालो पे मालिश का देखा टोटा है
ताज पनामा केवन्डर पीते हैँ कई सालोँ से
वो माँचिस मागते रहँते हैँ यू बीड़ी पीने वालो से
कह दो अपने बच्चो से न बीड़ी का शौक लगाये
ये पढ़े लिखे पैसे वालोँ से भी बीड़ी भीँख मँगाये
इन सबसे ज्यादा मजा यार देखो अफीम के खानेँ मेँ
दो दो घन्टे मौज उड़ावे बैठे रहे पाखाने मेँ
परेशान होना पड़ता घर से बाहर जाने मेँ
लगी थूखने चूल्हे मेँ औरत भी जर्दा खाने से
आप सभी की प्रतिक्रिया इस सम्बन्ध मेँ चाहिये..............
गन्दगी पसन्द हो तो जर्दा खाना सीख ले
भीँख गर माँगी नही तो बीड़ी पीना सीख ले
बीड़ी पीने की मित्रो आदत जब पड़ जायेगी
न होने पर माँगते जरा शर्म न आयेगी
माँगने से मरना भळा यह सच्चा लेखा है
कितने लखपतियोँ को बीड़ी माँगते देखा है
एक भाई तो ऐसे है जो बिना नशे के जीते है
पर कई भाई देखो पाखने मेँ बीड़ी पीते पीते है
बीड़ी पीने से भी हमने देखा धन्धा खोटा है
सिगरेट पीने वालो पे मालिश का देखा टोटा है
ताज पनामा केवन्डर पीते हैँ कई सालोँ से
वो माँचिस मागते रहँते हैँ यू बीड़ी पीने वालो से
कह दो अपने बच्चो से न बीड़ी का शौक लगाये
ये पढ़े लिखे पैसे वालोँ से भी बीड़ी भीँख मँगाये
इन सबसे ज्यादा मजा यार देखो अफीम के खानेँ मेँ
दो दो घन्टे मौज उड़ावे बैठे रहे पाखाने मेँ
परेशान होना पड़ता घर से बाहर जाने मेँ
लगी थूखने चूल्हे मेँ औरत भी जर्दा खाने से
आप सभी की प्रतिक्रिया इस सम्बन्ध मेँ चाहिये..............
आज फिर कोई तारा टूटा है ...मिल अंधेरों ने आसमान लूटा है ..
किसी दिन ऐसा बिका ...की फिर मशहूर हो गया ...
तनहा दीवार पर टंगा...मानो मजबूर हो गया ...
सितारा बोलते थे उसे ...और पोस्टर बना डाला ...
कांपते हाथों ने ...फिर किसी सर्दी जला डाला ...
आज फिर कोई तारा टूटा है ...मिल अंधेरों ने आसमान लूटा है ...
~Basant~
तनहा दीवार पर टंगा...मानो मजबूर हो गया ...
सितारा बोलते थे उसे ...और पोस्टर बना डाला ...
कांपते हाथों ने ...फिर किसी सर्दी जला डाला ...
आज फिर कोई तारा टूटा है ...मिल अंधेरों ने आसमान लूटा है ...
~Basant~
Lest my mind, me harms....
from the hallows of darkness call I thee
from this misery make me free
take me away in to your arms
away away away
lest my mind, me harms
damn the world
damn the worlds citizens
damn all those selfish so called humans around
fit they are only to be
buried as dead, under the ground
damn me
damn this process of negative thought
damn the situation
in which I find myself caught
from the hallows of darkness call I thee
from this misery make me free
take me away in to your arms
away away away
lest my mind, me harms
sandeep jain
The Unicorn
Friday, 14 October 2011
एक अजनबी....
एक अजनबी
एक अजनबी से मुलाकात हो गयी ,
बातों ही बातों में हर बात हो गई,
कुछ उसने कही कुछ हमने कही,
पहचान हमारी कुछ यूँ हो गई ,
अब उसकी यादे भी साथ हो गई,
एक अजनबी से मुलाकात हो गई.....
सिलसिला बातों का ये चलता रहा,
दिल उनके लिए ये मचलता रहा,
अब ख़ास उनकी हर बात हो गई,
एक अजनबी से मुलाकात हो गई....
ना जाने ये कैसी मुलाकात थी,
सबसे जुदा उनमे कुछ बात थी,
आँखों ही आँखों में रात हो गई,
एक अजनबी से मुलाकात हो गई....
हर शाम को सपने सजाते हम ,
उनकी बातों में खुद को भुलाते हम,
इंतज़ार की अब इन्ताहात हो गई,
एक अजनबी से मुलाकात हो गई....
एक अजनबी से मुलाकात हो गयी ,
बातों ही बातों में हर बात हो गई,
कुछ उसने कही कुछ हमने कही,
पहचान हमारी कुछ यूँ हो गई ,
अब उसकी यादे भी साथ हो गई,
एक अजनबी से मुलाकात हो गई.....
सिलसिला बातों का ये चलता रहा,
दिल उनके लिए ये मचलता रहा,
अब ख़ास उनकी हर बात हो गई,
एक अजनबी से मुलाकात हो गई....
ना जाने ये कैसी मुलाकात थी,
सबसे जुदा उनमे कुछ बात थी,
आँखों ही आँखों में रात हो गई,
एक अजनबी से मुलाकात हो गई....
हर शाम को सपने सजाते हम ,
उनकी बातों में खुद को भुलाते हम,
इंतज़ार की अब इन्ताहात हो गई,
एक अजनबी से मुलाकात हो गई....
एक नयी सुबह
सूरज की पहली किरण के साथ
आँख खुलते ही ज्योंहीं
मैंने खिड़की का पर्दा हटाया
देखा सूरज की रोशनी
बादलो को चीरती हुई वृक्ष के बीच से
छन कर मेरे चेहरे पर आ पसरी
एक नयी चमक के साथ
एक नयी उम्मीद के साथ
पूरे कमरे में उजाला कर गई,
मानों किरणों की चादर ने
अंधेरो की खामोशियों को ढक लिया हो जैसे
बीते कल की सारी चिंताओं को खुशियों की चादर ने
अपने भीतर समेट लिया हो,
सारी कायनात एक नयी रोशनी के साथ जगमगा उठी
एक नयी सुबह के नए सफ़र के साथ,
प्रकृति के इस सुन्दर सन्देश के साथ ही
मैं उठी और धन्यवाद दिया उस भगवान को
जिन्होंने प्रकृति के कई रूपों द्वारा
हमें जीवन जीने का सन्देश दिया,
आशाओ की ज़मी और उमंगो का आसमां दिया....
हर नयी सुबह के साथ एक नया पैगाम दिया..
~रेनू Ji~
अनजाने चेहरों वाली सीमाओं से पार.....
अनजाने चेहरों वाली
सीमाओं से पार
भाषाओं से इतर
कई तस्वीरें
देखीं /
सुनीं
पहली-पहली बार
तुम्हारे ही संग.
उनमें बसा प्रेम
उभरा तब तुम्हारी आंख से
छलका हमारे होंठों तक.
आज फिर
गया उसी दौर में
पर अबूझ रह गए
वो चित्र.
जड़ हैं नायक
स्थिर नायिकाएं.
ना वहां युद्ध था
ना प्रेम
था तो बस
एक अटूट एकांत.
सन्नाटा
जिसे चीर पाना
नहीं मुमकिन
मेरे लिए
बिना तुम्हारे.
अब अपने ही गर्भ में
छिपा लो.
जन्म देने से पहले
सिखा देना
अवाक् हो जाने के
चक्रव्यूह से निकलने का
अभेद्य मंत्र
~Chandi Dutt Shukla~
सीमाओं से पार
भाषाओं से इतर
कई तस्वीरें
देखीं /
सुनीं
पहली-पहली बार
तुम्हारे ही संग.
उनमें बसा प्रेम
उभरा तब तुम्हारी आंख से
छलका हमारे होंठों तक.
आज फिर
गया उसी दौर में
पर अबूझ रह गए
वो चित्र.
जड़ हैं नायक
स्थिर नायिकाएं.
ना वहां युद्ध था
ना प्रेम
था तो बस
एक अटूट एकांत.
सन्नाटा
जिसे चीर पाना
नहीं मुमकिन
मेरे लिए
बिना तुम्हारे.
अब अपने ही गर्भ में
छिपा लो.
जन्म देने से पहले
सिखा देना
अवाक् हो जाने के
चक्रव्यूह से निकलने का
अभेद्य मंत्र
~Chandi Dutt Shukla~
बे नजर है अद्ल, आजम कभी था न है न होगा ........
बे नजर है अद्ल, आजम कभी था न है न होगा ........ अद्ल - न्याय , आजम - गूँगा
जो न सच सुने वो आज़म कभी था न है न होगा .........आज़म - श्रेष्ठ
जग जीत कर जहां से जगजीत था गया जो
सुर से जुदा तो सरगम कभी था न है न होगा
मुझे छोड़ कर गया जो था वो राह का मुसाफिर
मेरा यार मुझसे बरहम कभी था न है न होगा
जो सभी के काम आये, है मकाम उसका ऊंचा
न शरफ़ करीम का कम कभी था न है न होगा .........शरफ़ - श्रेष्ठता , करीम - दानी
तुझे चाहता बहुत है वो ज़हीन है मगर कुछ
तेरी चाह का मुजस्सम कभी था न है न होगा
है खराब जिसकी नीयत करे लाख बार कोशिश
वो शरीक़े आबे ज़मज़म कभी था न है न होगा ....... आबे ज़मज़म - मक्का के पवित्र कुएं का जल
लबे तिश्नगी समंदर की बुझा रहा है दरिया ...........तिश्नगी - प्यास
न समन्दरों में ये दम कभी था न है न होगा
Wednesday, 28 September 2011
मैं जानती हूँ
मैं जानती हूँ
तुम कभी न कह सकोगे वो बात
फिर भी बताती रही सब
तुम्हारी आवाज़ की खनक
... कानो से गुजर कर मोम कर जाते हो
कैसे कहूं रोम रोम सिहराते हो
दुनिया भर की बातें निकल आती हैं
फोन रखते ही वीरानी छा जाती है
आँख जाने क्यूँ बेबात ही भर आती है
नम है हर छोर ...
ह्रदय स्पंदित है इस नमी से ..तुम्हारा भी
मैं जानती हूँ
तुम कभी न कहोगे कुछ ज़ज्बात
तुम कभी न कह सकोगे वो बात
फिर भी बताती रही सब
तुम्हारी आवाज़ की खनक
... कानो से गुजर कर मोम कर जाते हो
कैसे कहूं रोम रोम सिहराते हो
दुनिया भर की बातें निकल आती हैं
फोन रखते ही वीरानी छा जाती है
आँख जाने क्यूँ बेबात ही भर आती है
नम है हर छोर ...
ह्रदय स्पंदित है इस नमी से ..तुम्हारा भी
मैं जानती हूँ
तुम कभी न कहोगे कुछ ज़ज्बात
By: Manjula Saxena
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