मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहॉं ।
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहॉं ।।
ख्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया ।
अनवरत जीने की खातिर दे रहा हूं इम्तहां ।।
मुतमइन कैसे रहूं जब घर पङोसी का जले ।
है फरिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहॉं ।।
हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए ।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमां ।।
गम नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में ।
हो अगर एहसास जिन्दा छोड़ जायेगा निशां ।।
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं ।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां ।।
मिलती है खुशबू सुमन को रोज अब खेरात में ।
जो फकीरी में लुटाते अब यहॉं फिर कल वहॉं ।।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!Anurag Srivastava!!!!!!!!! !!!!!!!!!!!!!!!
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