आजकल की भागदौड़ से भरी जिंदगी में किसी को धन की कमी खलती है, तो कोई मानसिक शांति के लिये तरसता रहता है। संयोग से अगर किसी के पास पर्याप्त धन-सम्पत्ति और सुख-सुविधाएं मौजद हों तो दुर्भाग्य से उसका स्वास्थ्य इस लायक नहीं होता कि वह जिंदगी में चैन की बंसी बजा सके। तो ऐसे में आखिर क्या किया जाए कि व्यक्ति सुखी और स्वस्थ तो हो ही पर साथ ही समझदार भी कहलाए इसके लिए मनुष्य का अपने आहार की तरफ ध्यान देना जरूरी है।
कहते हैं सम्राट की तरह नाश्ता करो, राजकुमार की तरह दोपहर का भोजन करो एवं भिखारी की तरह शाम का भोजन करो। प्राचीन धर्म शास्त्रों में दी हुई अमूल्य आध्यात्मिक शिक्षाओं में इस विषय में बड़ी ही बातें कही गई है। इनमें कहा गया है कि इन तीन गुणों को अपनाकर कोई भी इंसान सुखी और स्वस्थ होने के साथ ही समझदार भी बन सकता है।
ये तीन गुण हम से और हमारी भोजन प्रणाली से जुड़े हैं। भोजन प्राणऊर्जा प्राप्त करने का स्रोत है भोजन। जब हम बहुत ज्यादा खा लेते हैं या बहुत गरिष्ठ भोजन कर लेते हैं तो थक जाते है। और जिस दिन बहुत हल्का फुल्का खाना खाते हैं जैसे फल-सलाद वगैरह, उस दिन हल्का लगता है? पहली स्थिति में भारीपन और आलस्य महसूस होता है और दूसरी अवस्था में शरीर हल्का व ऊर्जायुक्त रहता है।
तभी तो कहां जाता है कि जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन। सात्विक आहार हमारी क्रियाशीलता को बढ़ाते है। मांसाहारी खाने की तुलना में शाकाहारी भोजन हमारे शरीर के लिए ज्यादा उपयुक्त है, और जल्दी पच भी जाता है। मनुष्य की पाचन प्रणाली शाकाहारी भोजन पचाने में अधिक उपयुक्त है। उदाहरण के लिए हमारे दाँत और हमारी लंबी अंतडिय़ां शाकाहारी भोजन खाने और पचाने के लिए बनाई गयी हैं। बहुत ज्यादा पका हुआ या बासी खाने की तुलना में ताजा कच्चा भोजन ज्यादा प्राणयुक्त है।
हमारे धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि अगर सफलता पाना है तो सबसे पहले व्यक्ति को अपने आहार पर ध्यान देना चाहिए।
कैसा हो आहार
1. कम खाना- यानी हमेशा भूख से थाड़ा कम भोजन करने वाला व्यक्ति सदा स्वस्थ रहता है।
2. गम खाना- यानी धैर्य रखना और अनिवार्य न होने तक गुस्से या किसी दूसरे आवेश को नियंत्रित रखना।
3. नम जाना- यानी उम्र में बड़े और खुद से अधिक योग्य चाहे वह उम्र और ओहदे में छोटा हो के सामने विनम्र व्यवहार करना।
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