बचपन से हमें सिखाया जाता है कि सावधान रहना, जिंदगी की राहों में भटक मत जाना। साधारणतया भटकने का अर्थ है कि हम चरित्रहीन न हो जाएं। हमारी जीवन यात्रा में दो चीजें होती हैं, तब हम भटकते हैं। पहला, यदि कोई धक्का लगे तो चाल लड़खड़ाएगी और दूसरा, यदि कोई घसीट ले तो मार्ग से इधर-उधर हो जाएंगे।
लोभ, मोह, काम, क्रोध, मान, पद, प्रतिष्ठा इन सबके धक्के हमें गिरा देते हैं। घसीटने के मामले में इंद्रियां बहुत ताकतवर होती हैं। खींच-खींचकर विषयों की ओर ले जाकर पटक देती हैं। इनसे बचने के लिए अपने भीतर या तो अति आत्मविश्वास जगा लें या श्रद्धा का अंकुर पैदा कर लें।
श्रद्धावान व्यक्ति नसीहतों के प्रति गंभीर होता है। उसके लिए सीख आचरण से अधिक भरोसे का विषय होती है। माता-पिता और गुरुजन की सीख वह अनुशासन के रूप में नहीं, श्रद्धा के रूप में लेता है। झोंकों से गिरने वाले और इंद्रियों से घसीटे गए लोग भविष्य के अज्ञात भय से भी डरने लगते हैं कि अब क्या होगा?
यदि श्रद्धा जीवन में है तो भय को जाना ही पड़ेगा। एक बात और कि जीवन में जब भी भय आएगा, उसके मूल में अहंकार जरूर होगा। अहंकारी व्यक्ति का जीवन दूसरों द्वारा की गई प्रशंसा और आलोचना पर निर्भर होता है।
उसे सदैव भय बना रहता है कि दूसरे उसके बारे में क्या कहेंगे और इसीलिए वह धक्के भी खाता है, लेकिन श्रद्धा आपको स्वयं पर टिकाएगी, निर्भय बनाएगी।
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