Monday 28 November 2011

सब से जीत कर भी दुनिया इस से हारी......


चलो आज मिल कर नई रोशन सुबह जगाएं.....


हर नए में मैं भी होता गया कुछ तो नया ...


 

कोशिश खुद को तलाशने की
जूनून खुद को तराशने का
जुस्तजू खुद को निखारने की
कहीं ले गयी नए मंज़रों की ओर
रस्ते बनते गए
सपने सजते गए
रहबर मिलते गए
हर नए में मैं भी होता गया कुछ तो नया ...हर रोज़

बे-इन्तहा प्यार मेरा न सह सका ऐसा भोलापन......


 


बे-इन्तहा प्यार मेरा न सह सका ऐसा भोलापन

तेरी दुनिया में अब भी रंग हैं , तितलियाँ हैं सपने हैं 

अभी अभ्यस्त नहीं हुई अदाकारी की ये मुस्काने 

अभी भी तुझको लगता है , सब तेरे अपने हैं

काश जिंदा रहे जिंदादिली मासूमियत पाकीजगी 

मुझ में हिम्मत नहीं , रिवाएतें बताने की

मेरे जाने से कुछ देर और रहेगा ये यकीं 

मेरे जाने से हंसी तेरी ये बच पायेगी 

कुछ पल की मायूसी कुछ पल में संभल जाएगी 

इश्क ही होगा कुर्बां इस तरह से जानेमन 

मुझे यकीं है ये सच तू भी समझ जाएगी
 

जलवे तेरे ज़लाल के....


मेरे आंसुओ को समेट कर मुस्कुराहटें है बांटता.....

 

आज फिर से मैं हार गयी खुद को........

 

वक़्त है सबसे बड़ा......


 

मैं तो सदा
फूंक फूंक कदम रखता था
सौ सौ बार परखता था
जाँच-पड़ताल में माहिर
चेहरे पे दिल न होने दूं ज़ाहिर
हर शह को दी मात , चाहे हो रिश्तों की बिसात
यकायक ये क्या हो गया
तयशुदा रास्ता ही खो गया
गरूर अपनी उड़ानों का , देखो ज़मीं पे है पड़ा
वक़्त ही है बादशाह , वक़्त है सबसे बड़ा