Wednesday 28 September 2011

मैं जानती हूँ

 
मैं जानती हूँ
तुम कभी न कह सकोगे वो बात
फिर भी बताती रही सब
तुम्हारी आवाज़ की खनक
... कानो से गुजर कर मोम कर जाते हो
कैसे कहूं रोम रोम सिहराते हो
दुनिया भर की बातें निकल आती हैं
फोन रखते ही वीरानी छा जाती है
आँख जाने क्यूँ बेबात ही भर आती है
नम है हर छोर ...
ह्रदय स्पंदित है इस नमी से ..तुम्हारा भी
मैं जानती हूँ
तुम कभी न कहोगे कुछ ज़ज्बात
 
By: Manjula Saxena

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