Friday 11 November 2011

ये है हमारे दुख का असली कारण...



कई बार हम योजनाएं बनाते हैं लेकिन काम फिर भी बिगड़ ही जाता है। जिस तरह के परिणामों की अपेक्षा हम करते हैं उससे अलग ही या उल्टे ही परिणाम हमें मिलते हैं। कई लोग सोचते हैं कि हमने तो सारी योजनाएं ठीक बनाई थीं, उस पर काम भी किया था फिर परिणाम क्यों नहीं मिले। 

इसका जवाब है हमने योजनाएं तो बनाई लेकिन भविष्य में ऐसा ही होगा, जैसा हम सोच रहे हैं, यह मानना गलत है। भविष्य की गर्त में क्या छिपा है कोई नहीं जानता, हम सिर्फ कर्म करें, अगर हम अपने हर कर्म से ज्यादा फायदे की अपेक्षा करेंगे तो यह बात हमें सिर्फ पीड़ा ही देगी। हम कर्म करें, लेकिन उससे अपेक्षा को निकाल दें। 

एक नगर सेठ था। उसने एक आलीशान महल बनवाया। बड़ी धनराशि खर्च करके तैयार किए गए महल के रंगरोगन का काम चल रहा था। सेठ महल के बाहर खड़ा-खड़ा कारीगरों को निर्देश दे रहा था। सेठ ने मुख्य कारीगर से कहा कि इस महल पर ऐसे रंगों से बेल-बूटे बनाओ कि मेरी सात पुश्तों तक इसके रंग फीका ना पड़े। कारीगर भी उसके बताएं अनुसार काम कर रहे थे। तभी वहां से एक संत गुजरे। 

उन्होंने सेठ की बातें सुनीं, सेठ को देखकर मुस्कुराए और चले गए। सेठ को यह बात अजीब लगी। उसी दिन दोपहर को सेठ अपने घर में भोजन कर रहा था, उसके चार साल के बच्चे ने उसकी थाली को ठोकर मार दी। सेठ की पत्नी ने उसे डांटा तो सेठ ने कहा कि इसे मत डांट, यह तो कुल का चिराग है। हमारी पीढिय़ां इसी से चलेंगी। तभी वहां वही संत भिक्षा मांगने पहुंचे। उन्होंने सेठ की बात सुनी और मुस्कुराकर चल दिए। सेठ को फिर अजीब लगा। सेठ से रहा नहीं गया। वह संत के पीछे चल दिया। 

एक जगह एकांत में जाकर उसने संत से पूछा आपने दो बार मेरी बात सुनी और दोनों बार मुस्कुराकर चल दिए। ेऐसा क्यों? संत ने कहा तुम्हें भविष्य का कुछ पता नहीं और तुम जानें क्या-क्या योजना बना रहे हो। तुम जिस महल पर सात पुश्तों तक दिखने वाली बेल-बूटे बनवा रहे हो, वह तुम सात दिन भी नहीं देख पाओगे, क्योंकि आज से सातवें दिन तुम्हारी मौत हो जाएगी। 

यही सोचकर मैं मुस्कुरा दिया। सेठ का दिल बैठ गया, आंखों में आंसू आ गए। उसने पूछा फिर आप दूसरी बार क्यों मुस्कुराए मेरे घर आकर। संत ने कहा जिस बेटे ने तुम्हारी थाली को ठोकर मारी और तुमने उसका ठुकराया हुआ खाना भी बड़े प्रेम से खाया, वो तुम्हारे कुल का नाश कर देगा। वो पिछले जन्म की तुम्हारी पत्नी का प्रेमी है, जो इस जन्म में तुम्हारा बेटा बना है। 

उसे ही तुम इतने प्यार से रख रहे हो, वो तुम्हारी सारी कमाई बुरे कामों में उड़ा देगा। सेठ जोरों से रोने लगा, संत ने उसे समझाया कि तुमने अपने लिए योजनाएं तो बहुत अच्छी बनाई लेकिन उन योजनाओं से तुम परिणाम भी अपने अनुकूल चाहते हो, जो कि गलत है। परिणाम तो नियति के हाथों में है। हमारे हाथों में नहीं।

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