Friday 11 November 2011

किसका सहारा लें अगर जीवन में कभी जरूरत पड़े?



अपनी जीवन यात्रा अपने ही भरोसे पूरी की जाए। यदि सहारे की आवश्यकता पड़े तो परमात्मा का लिया जाए। संसार के सहयोग के भरोसे न रहें। संसार के भरोसे ही अपना काम चला लेंगे, यह सोचना नासमझी है, लेकिन अपने ही दम पर सारे काम निकाल लेंगे, यह सोच भी मूर्खता है।


इसलिए सहयोग सबका लेना है, लेकिन अपनी मौलिकता को समाप्त नहीं करना है। इसके लिए अपने भीतर के साहस को लगातार बढ़ाते रहें। अपने जीवन का संचालन दूसरों के हाथ न सौंपें। हमारे ऋषि-मुनियों ने एक बहुत अच्छी परंपरा सौंपी है और वह है ईश्वर का साकार रूप तथा निराकार स्वरूप।


कुछ लोग साकार को मानते हैं। उनके लिए मूर्ति जीवंत है और कुछ निराकार पर टिके हुए हैं। पर कुल मिलाकर दोनों ही अपने से अलग तथा ऊपर किसी और को महत्वपूर्ण मानकर स्वीकार जरूर कर रहे हैं।


जो लोग परमात्मा को साकार मानते हैं, मूर्ति में सबकुछ देखते हैं, वह भी धीरे-धीरे मूर्ति के भीतर उतरकर उसी निराकार को पकड़ लेते हैं, जिसे कुछ लोग मूर्ति के बाहर ढूंढ़ रहे होते हैं। भगवान के ये दोनों स्वरूप हमारे लिए एक भरोसा बन जाते हैं। व्यर्थ के सपने बुनकर जो अनर्थ हम जीवन में कर लेते हैं, परमात्मा के ये रूप हमें इससे मुक्त कराते हैं, क्योंकि हर रूप के पीछे एक अवतार कथा है।


अवतार का जीवन हमारे लिए दर्पण बन जाता है। आईने में देखो, उस परमशक्ति पर भरोसा करो और यहीं से खुद का भरोसा मजबूत करो।

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